
न्यूयॉर्क में शुरू हुआ संयुक्त राष्ट्र महासभा का 80वां सत्र ऐसे समय जैसे वैश्विक राजनीति के कैमरा पर नए टैनसे मिले हों। राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी और वैश्विक मुद्दों की लंबी‑लिस्ट देखते हुए ये बैठक सिर्फ भाषणों की महफिल नहीं, एजेंडा सेट करने का मौका है।
गुटेरेस का आह्वान: “UNSC में सुधार चाहिए — पुरानी फिल्म नहीं बचेगी”
महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने साफ कहा है कि UNSC (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) को 1945 की दुनिया का प्रतिबिंब नहीं होना चाहिए, बल्कि 2025 की दुनिया का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। उनके प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक के शब्दों में, “महासचिव यूएनएससी में सुधार के बहुत समर्थक हैं ताकि इसे अधिक représentation हो।”
इसे भारत की पुरानी मांग के समर्थन के रूप में देखा जा रहा है, जो लंबे समय से एक विस्तारित और न्यायोचित सुरक्षा परिषद चाहता है।
भारत की दावेदारी: सिर्फ बातें नहीं, तैयारी भी है
भारत इस UNSC सुधार को ‘सर्वोच्च प्राथमिकता’ मानता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पिछले दिनों संसद में स्पष्ट किया कि भारत का दृढ़ विश्वास है कि ये समय आ गया है जब वैश्विक वास्तविकताओं को देखते हुए परिषद के स्थायी सदस्यों की सूची में नए नाम भी शामिल हों।
भारत की दावेदारी सिर्फ ‘वोट बैंक’ की नहीं — उसकी जमीनी शक्ति, राजनैतिक वजन और विश्व में भूमिका ऐसी है कि वह सक्षम है। लेकिन जैसे हर क्रिकेट खिलाड़ी नहीं कप्तान बनता, वैसे ही हर दावेदार को स्थायी सदस्य नहीं मिलता।
P5 × भारत: कौन किनका साथ दे रहा है, कौन विरोध कर रहा है
कौन स्थायी सदस्य हैं: अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन (P5)।
कौन दावेदार हैं: भारत, जापान, ब्राज़ील जैसे देश।
वैश्विक कूटनीति की इतनी सस्पेंस स्टोरी कि मूवी स्क्रिप्ट भी हार मान जाए।
चीन स्पष्ट विरोधी है। उसकी दिक्कत सिर्फ ‘वेटो पावर’ और ‘आयोग की संख्या’ से नहीं, बल्कि इससे है कि अगर भारतीय जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश को स्थायी सीट मिल गई तो वैश्विक पेंसिल कौन मैन्युअली चलाएगा?
बहुपक्षीय प्रणाली में भारत की भूमिका: सिर्फ शब्दों में नहीं काम में भी
दुजारिक की टिप्पणी है कि भारत “बहुपक्षवाद के प्रबल समर्थक” है। वह कई प्रमुख UN मिशनों, शांति अभियानों, अंतरराष्ट्रीय फोरम्स में सक्रिय है। भविष्य की संभावनाएँ भी हैं कि अगर स्थायी सदस्यता मिल जाए तो भारत का हिंटिंग‑हंटर नहीं बल्कि Decision‑Maker बनने का मौका मिले।
राजनीतिक टकराव और चुनौतियाँ: जीत की राह आसान नहीं
चीन की प्रतिक्रिया पहले से ही गम्भीर मानी जा रही है, क्योंकि बदलाव से विशेषाधिकारों में कटौती होगी। अन्य P5 सदस्यों का झुकाव भी देखा जाना चाहिए — क्या वे नए स्थायी सदस्यों के साथ सत्ता साझा करने को तैयार हैं?

राज्यों और वर्तमान स्थायी सदस्यों के बीच ‘वेटो’ की शक्ति पर संघर्ष, हैसियत और गठबंदन नए राजनीतिक समीकरण तैयार कर सकते हैं।
भारत की UNSC सीट? शायद ‘मेड इन न्यूयॉर्क’ नहीं, ‘निर्मित राजनीति’ का फल होगी
सोचिए — एक दिन आप दुनिया के चौका‑चोराहों पर कहते हैं, “हाह! भारत का नाम नहीं आता UNSC की स्थायी सूची में।”
और अगली सुबह बटन दबाने पे भारत नाम आता है — ना कांग्रेसी भाषण, ना पार्टी झंडे, सबूत बस ग्लोबल प्रेसिटीज़ और UNGA फोटोज़।
अगर ऐसा हुआ, तो ये सिर्फ जीत नहीं होगी। ये ‘2025 की दुनिया’ की जीत होगी, जहां ताकत सिर्फ मेजऊम नहीं बल्कि जिम्मेदारी और लोकतंत्र में दरकार होगी।
यह वक्त है कि ग्लोबल टेबल बड़ा हो
यह स्पष्ट है कि भारत के लिए UNSC में स्थायी सदस्यता अब सिर्फ एक सपना नहीं, बल्कि एक वैश्विक चर्चा का हिस्सा है। गुटेरेस का समर्थन, बहुपक्षीय व्यवस्था की रिकवरी, और दुनिया की बदलती ताकतें मिलकर ये संकेत दे रही हैं कि परिवर्तन की हवा चल रही है।
लेकिन परिवर्तन तभी स्थायी बनेगा जब देशों में इच्छाशक्ति होगी, गठबंदन होगा और नियमों में संशोधन होगा। तो देखते हैं कि ये हल्की सी हवा अगस्त की आंधी बनेगी या सिर्फ दरवाजे के बाहर की कड़कड़ाती ठंड।
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